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Monday, December 19, 2016

My Gangrape - mera samuhik balatkar



मेरा नाम नेहा है। 22 साल की खूबसूरत महिला हूं। दो साल पहले मेरी शादी कोटा नीवासी शरद से हुई है। मैं दिल्ली के ग्रीन पार्क में रहती थी। मेरी एक ननद रेखा भी करोल बाग मे रहती है। उसके पति राजकुमार ठाकुर का स्पेयर पार्ट का व्यवसाय है।

रेखा दीदी बहुत ही हँसमुख महिला है। राज जी मुझे अक्सर गहरी नज़रों से घूरते रहते थे। मगर मैंने नज़र अंदाज़ किया। मैं बहुत सेक्सी लडकी हूँ। मेरे कालेज मे मुझे काफी चाहने वाले थे। मगर मैंने सीर्फ दो लड़कों को ही लीफ़्ट दी थी। लेकिन मैंने किसी को अपना बदन छूने नहीं दिया। मैं चाहती थी की सुहाग रात को ही मैं अपना बदन अपने पाती के हवाले करूं।

मगर मुझे क्या पता था की मैं शादी से पहले ही सामूहिक सम्भोग का शिकार हो जाउंगी। वो भी ऐसे आदमी से जो मुझे सारी जिंदगी रोंदता रहेगा। शादी की सारी बात-चीत रेशमा दीदी ही कर रही थी। इसलिए अक्सर उनके घर आना-जाना लगा रहता था। कभी-कभी मैं सारे दिन वहीँ रूक जाती थी। एक बार तो रात को भी वहीँ रुकना पड़ा। मेरे घर वालों के लिए भी ये नॉर्मल बात हो गयी थी।

वो मुझे वहाँ जाने से नहीं रोकते थे। शादी को सीर्फ बीस दिन बाक़ी थे। अक्सर रेखा दीदी के घर आना-जान पड़ता था। इस बार भी उन्होंने फ़ोन कर कहा, "बन्नो, कल शाम को घर आना दोनों जेवरों का आर्डर देने चलेंगे और शाम को कहीँ खाना-वाना खाकर देर रात तक घर लौटेंगे। अपनी मम्मी को बता देना की कल तू हमारे यहीं रात को रुकेगी। सुबह नहा धोकर ही वापस भेजूंगी।" "जी आप ही मम्मी को बता दो ना," मैंने फ़ोन मम्मी को पकडा दिया। उन्होने मम्मी को कंवीन्स कर लीया।

अगले दिन शाम को 6 बजे तैयार हो कर अपनी होने वाली ननद के घर को निकले। सर्दियों के दीन थे, इस्लीये अँधेरा छाने लगा था। मैं करोल बाग स्थित उनके घर पर पहुंची। दरवाजा बंद था। मैंने बेल बजाया। काफी देर बाद राज जी ने दरवाजा खोला। "दीदी हैं?" मैंने पूछा, वो कुछ देर तक मेरे बदन को ऊपर से नीचे तक घूरते रहे। कुछ बोला नहीं। "हटीय़े मुझे ऐसे क्या देखते रहतें हैं। बताओं दीदी को," मैंने उनसे मजाक किया, "कहॉ है दीदी?" उन्होने बेडरुम की तरफ इशारा किया और दरवाजे को बंद कर दीया।

तब तक भी मुझे कोई अस्वाभावीक कुछ नहीं लगा। मगर बेडरुम के दरवाजे पर पहुँचते ही मुझे चक्कर आ गया। अंदर दो आदमी बेड पर बैठे हुये थे। उनके बदन पर सीर्फ शोट्स था। ऊपर से वे नीवस्त्र थे। उनकी हाथों मे शराब के ग्लास थे। और सामने ट्रे मे कुछ स्नेक्क्स और एक आधी बोतल रखी हुई थी। अचानक पास मे नज़र गयी। टीवी पर कोई ब्लू फिल्म चल रही थी। मैंने वहाँ से भाग जाने मे ही अपनी भलाई समझी। वापस जाने के लिए जैसे ही घूमी राज की छाती से टकरा गयी। "जानू इतनी जल्दी भी क्या है। कुछ देर हमारी महफ्लि मे भी तो बैठो। दीदी तो कुछ देर बाद आ ही जायेगी," कहकर उसने मुझे जोर से धक्का दिया।

मैं उन लोगों के बीच जा गिरी। उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। "मुझे छोड़ दो। मेरी कुछ ही दिनों मे शादी होने वाली है। जीजाजी आप तो मुझे बचा लो। मैं आपके साले की होने वाली बीवी हूँ।" मैंने उनके सामने हाथ जोड़ कर मन्नतें की। "भाई मैं भी तो देखूं तू मेरे साले को सन्तुष्ट कर पायेगी या नहीं।" मैं दरवाजे को ठोकने लगी। "दीदी-दीदी मुझे बचाओ," की आवाज लगाने लगी। "तेरी दीदी तो अचानक अपने मायके कोटा चली गयी। तुम्हारी होने वाली सास की तबीयत कल रात को खराब हो गयी थी।"

यह कहकर राज मुझे दरवाजे के पास आकर मुझे लगभग घसीटते हुये बेड़ तक ले गए। "मुझे तेरा ख़याल रखने को कह गयी थी। इसलिय आज सारी रात हम तेरा ख़याल रखेंगें।" कहकर उसने मेरे बदन से चुन्नी नोच कर फेंक दी। तीनों मुझे घसीटते हुये बेड़ पर लेकर आये। कुछ ही देर मे मेरे बदन से सलवार और कुर्ता अलग कर दिया। मैं दोनो हाथों से अपने योवन को छुपाने की असफल कोशीश कर रही थी। तीन जोडी हाथ मेरी छातीयों को बुरी तरह मसल रहे थे। और मैं छूटने के लिये हाथ पैर चला रही थी। बार-बार उनसे रहम की भीख मांगती। फिर मेरी छातीयों पर से ब्रॉ़ को अलग कर दिया। तीनों ने मेरी छातीयों को मसल-मसल कर लाल कर दिया था।

फिर मेरे चूचुक को चूसने और काटने का दौर चला। मैं दर्द से चीखी जा रही थी। मगर सुनने वाला कोई नहीं था। एक ने मेरे मुँह मे कपड़ा ठूंस कर उसे मेरी ओढ़नी से बाँध दिया। जिससे मेरे मुँह से आवाज ना निकले। अचानक दो उंगलीयाँ मेरे टांगों की जोड़ पर पहुंच कर पैंटी को एक तरफ सरका दिया और दोनो उंगलीयाँ बड़ी बेदर्दी से मेरी चुत मे प्रवेश कर गयी। कुंवारी चुत पर यह पहला हमला था इसलीये मैं दर्द से चीख उठी। "अरे यार ये तो पुरा सोलीड माल है। बिल्कुल अन्छुई।"

उन लोगों की आँखों मे भूख कुछ और बढ गयी। मेरी पेंटी को चार हाथों ने फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। मैं अब बिलकुल नीवस्त्र उनके बीच लेटी हुई थी। मैंने भी अब अपने हथियार दाल दिये। "देख हम तो तुझे जरूर चोदेंगे। अगर तू भी हमारी मदद करती है तो यह घटना जींदगी भर याद रहेगी और अगर तू हाथ पैर मारती है तो हम तेरे साथ बुरी तरह से बालात्कार करेंगे। जिसे तू सारी उमर नहीं भूलेगी. अब बोल तू हमारे खेल मे शामिल होगी या नहीं।" मैंने मुँह से कुछ कहा नहीं मगर अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। इससे उनको पता लग गया की अब मैं उनका विरोध नहीं करूंगी।

"प्लीज भैया मैं कुंवारी हूँ," मैंने एक आखरी कोशिश की। "हर लडकी कुछ दिन तक कुंवारी रहती है। अब चल उठ," राज ने कहा, "अगर तू राजी ख़ुशी करवा लेती है तो दर्द कम होगा और अगर हमे जोर जबरदस्ती करनी पडे तो नुकसान तेरा ही होगा।" मैं रोते हुये उठ कर खड़ी हो गयी। "हाथों को अपने सिर पर रखो।" मैंने वैसा ही किया। "टागों को चौड़ी करो" "अब पीछे घुमो।" उन्होने मेरे नग्न शरीर को हर एंगल से देखा। फिर तीनों उठकर मेरे बदन से जोंक की तरह चिपक गए।

मेरे अंगों को तरह-तरह से मसलने लगे। मुझे खींच कर बिस्तर पर लिया दिया और मेरी टांगों को चौड़ा करके एक तो मेरी चुत से अपने होंठ से चिपका दिया। दुसरा मेरे सतनों को बुरी तरह से चूस रह था, मसल रह था। मेरे कुंवारे बंदन में सीहरण सी दौड़ने लगी। मेरा विरोध पूरी तरह समाप्त हो चुका था। अब मैं `आह ऊऊह' कर सिस्कारियां भरने लगी। मेरी क़मर अपने आप उसके जीभ को अधिक से अधिक अंदर लेने के लिये ऊपर उठने लगी।

अपने हाथों से दुसरे का मुँह अपने स्तनों पर दबाने लगी। अचानक मेरे बदन मे एक अजीब से थर्थाराहत हुई और मैंने चूत से कुछ बहता हुआ महसूस किया। ये था मेरा पहला वीर्यपात, जो किसी का लंड अंदर गए बिना हो गया था। मैं निठाल हो गयी। कुछ ही देर बाद मैं गरम हो गई। तब तक राज अपने कपडे खोल कर पूरी तरह नग्न हो गया था। मैं एकटक उसके तन्तनाते हुये लुंड को देख रही थी। उसने मेरे सिर को हाथों से थामा और अपना लंड मेरे होंठों से सटा दिया। "मुँह खोल," राज ने कहा। "नही," मुँह को जोर से बंद किये हुए, मैंने इनकार मे सर हिलाया। "अभी ये साली मुँह नहीं खोल रही है। इसका इलाज़ कर," राज ने मेरी चुत से सटे हुये आदमी से कहा।

उसने मेरी चूत के दाने को दांतों के बीच दबा कर काट दिया। मैं "आआआअह्" करके चीख उठी और उसका मोटा तगड़ा लंड मेरे मुँह मे समता चला गया। मेरे मुँह से "गूं...............ग गोऊँ" जैसी आवाजें निकल रहे थे। उसके लंड से अलग तरह की समेल आ रही थी। मैं उसके लंड को अपने मुँह से निकाल देना चाहती थी। मगर राज मेरे सीर को सख्ती से अपने लंड पर दबाये हुये था। जब मैं थोड़ी शांत हुई तो उसका लंड मेरे मुँह के अंदर बहार होने लगा। आधा लंड बाहर निकालकर फिर तेजी से अंदर कर देता। लंड गले तक पहुंच जाता था। इसी तरह कुछ देर तक मेरे मुँह को चोद्ता रहा।

तब तक बाक़ी दोनो भी नग्न हो चुके थे। राज ने अपना लंड मुँह से निकला लिया। उसकी जगह दुसरे एक ने अपना लंड मेरे मुँह मे डाल दिया। राज मेरी टांगों की तरफ चला गया। उसने मेरे दोनो टांगो को फैला दिया और अपना लंड मेरी चुत से छुया। मैं उसके लंड के प्रवेश का इंतज़ार करने लगी। उसने अपनी दो उंगलीयों से मेरी चुत की फंकों को एक दुसरे से अलग किया और दोनो के बीच अपने लंड को रखा।

फिर एक जोर के झटके के साथ उसका लंड मेरी चुत के दीवारों से रगड़ खाता हुआ कुछ अंदर चला गया।
सामने प्रवेश द्वार बंद था। अब अगले झटके के साथ उसने उस द्वार को पार कर लिया। तेज दर्द के कारण मेरी ऑंखें छलक आयी। ऐसा लगा मानो कोई लोहे का सरीया मेरे आर पार कर दिया हो। मेरी टाँगें दर्द से छटपटाने लगी। मगर मैं चीख नहीं पा रही थी। क्योकी एक मोटा लंड मेरे गले को पुरी तरह से बाँध रखा था। राज अपने लंड को पूरा अंदर डाल कर कुछ देर तक रुका।

मेरा दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा तो उसने भी अपने लंड को हरकत दे दी। वो तेजी से अंदर बाहर करने लगा। मेरी चुत से रीस-रीस कर खून की बूँदें चाद्दर पर गिरने लगी। तीसरा मेरे सतनों को मसल रह था। मुझे बदन में दर्द की जगह मजा आ रहा था। राज मुझे जोर-जोर से धक्के लगा रहा था। उसका लंड काफी अंदर तक मुझे चोट कर रह था। जो मुझे मुख मैथुन कर रह था वो ज्यादा देर नहीं रूक पाया और मेरे मुँह मे अपने लंड को पूरा अंदर कर वीर्य की पीचकारी छोड़ दी।

 यह पहला वाकया था, जब मैंने किसी का वीर्य चखा था। मुझे उतना बुरा नहीं लगा। उसने अपने टपकते हुये लंड को बाहर निकाला। वीर्य की कुछ बूँदें मेरे गल्लों और होंठों पर गिरी। होंठों से लंड तक वीर्य का एक महीन तार सा जुदा हुआ था। तभी राज ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और जोर-जोर से धक्के देने लगा। हर धक्के के साथ "हुंह हुंह" की आवाज निकल रही थी। मेरे शरीर मे वापस येंथान होने लगी और मेरी चुत से पानी छूट गया। वो तब भी रुकने का नाम नही ले रह था। कोई आधे घंटे तक लगातार धक्के मारने के बाद वो धीमा हुआ। उसका लंड झटके लेने लगा।

मैं समझ गयी अब उसका वीर्य पात होने वाला है। "प्लेज अन्दर मत डालो। मैं प्रेग्नंत नहीं होना चाहती," मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा। मगर मेरी मिन्नते सुनने वाला वहाँ कौन था। उसने ढ़ेर सारा विर्य मेरी चुत मे डाल ही दिया। उसके लंड के बहार निकलते ही जो आदमी मेरे सतनों को लाल कर दिया था। वो कूद कर मेरे जांघों के बीच पहुँचा। और एक झटके मे अपना लंड अंदर कर दीया। उसका उतावलापन देख कर ऐसा लग रह था मानो कितने दिन से भूखा हो। कुछ देर तक जोर-जोर से धक्के मरने के बाद वो भी मेरे ऊपर ढ़ेर हो गया। कुछ देर सुस्ता लेने के कारण जीस आदमी ने मेरे साथ मुख मैथुन कीया था। उसका लंड वापस खड़ा होने लगा। उसने मुझे चौपाया बाना कर मेरे पीछे से चुत मे अपना लंड प्रवेश करा दीया। वो पीछे से धक्के मार रह था जीसके कारण मेरे बडे-बडे स्तन कीसी पेड के फलों की तरह हील रहे थे।

"ले इसे चूस कर खड़ा कर," कह कर राज ने अपने ढीले पडे लंड को मेरे मुँह मे ठूंस दीया। उसमे से अब हम दोनो के वीर्य के अलावा मेरे ख़ून का भी तसते आ रह था. उसे मैं चूसने लगी. धीरे धीरे उसका लंड वापस तन गया. और तेज तेज मेरा मुख मैथुन करने लगा. एक बार झाड होने के कारण इस बार दोनो मुझे आगे पीछे से घंटे भर ठोकते रहे. फीर मेरे ऊपर नीचे के छेदों को वीर्य से भरने के बाद दोनो बीसतर पर लुढ़क गए. मैं बुरी तरह थक चुकी थी.

मैं धीरे धीरे उनका सहारा लेकर उठी और बाथरूम मे जाकर अपनी चुत को साफ कीया. वापस आकार देखा की चद्दर मे ढ़ेर सारा ख़ून लगा हुआ है. मैं वापस बीसतर पर ढ़ेर हो गयी. खाने पीने का दौर खतम होने के बाद वापस हम बेडरूम मे आ गए. उनमे से एक आदमी ने मुझे वापस कुछ देर राग्डा और हम नग्न एक दुसरे से लीपट कर सो गए. सुबह एक दौर और चला. फीर मैं अपने कपडे पहन कर घर चली आयी. कपडों को पहनने मे ही मेरी जान नीकल गयी. सतनों पर काले नीले जख्म हो रखे थे.

कई जगह दांतों से चमडी कट गयी थी. ब्रा पहनते हुये काफी दर्द हुआ. जांघों के बीच भी सुजन हो गयी थी. राज ने यह बात कीसी को भी नहीं कहने का अव्शाश्न दीया था. पता चलने पर शादी टूटने के चांस थे इसलीये मैंने भी अपनी जुबान बंद रखी. सुहाग रात को मेरे पाती देव से मैंने ये राज छुपाने मे कामयाब रही. शादी के बाद राज देल्ही वापस चला गया. आज भी जब मेरी ननद कोटा आती है अपने मइके, राज मुझे कयी बार जरूर चोद्ता है...... हरामी साला !!!!!

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